ध्यानू-भक्त की कथा
जिन दिनों भारत में मुग़ल सम्राट अकबर का शासन था, उन्ही दिनों की यह घटना है | नदौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक एक हज़ार यात्रियों सहित माता के दर्शनों के लिये जा रहा था | इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानू-भक्त को पेश किया |
अकबर ने पूछा, "तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो ?"
ध्यानू-भक्त ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, "मैं माँ ज्वाला – माई के दर्शन के लिये जा रहा हूँ | मेरे साथ जो लोग है, वे भी माता के भक्त है और यात्रा पर जा रहे हैं |"
अकबर ने ये सुनकर कहा, " ये ज्वाला माई कौन हैं ? और वहां जाने से क्या होगा ?"
ध्यानू-भक्त ने उत्तर दिया, "महाराज ! ज्वाला माई संसार की रचना एवं पालन करने वाली माता हैं | वे भगतों की सच्चे ह्रदय से की प्राथना स्वीकार करती हैं तथा उनकी सब मनोकामनाए पूरी करती हैं | उनका प्रताप ऐसा हैं उनके स्थान पर बिना तेल-बती के ज्योति जलती रहती हैं | हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन करने जाते हैं |"
अकबर बोले, "तुम्हारी ज्वाला माई इतनी ताकतवर है, इसका यकीं हमें किस तरह आएगा, आखिर तुम माता के भक्त हो,अगर कोई करिश्मा दिखाओ तो हम भी मान लेंगे |"
ध्यानू ने नम्रता से उत्तर दिया, श्रीमान ! मैं तो माता का एक तुच्छ सेवक हु, मैं भला क्या चमत्कार दिखा सकता हूँ ?
अकबर ने कहा, "अगर तुम्हारी बंदगी पाक एवं सच्ची है तो देवी माता जरूर तुम्हारी इज्जत रखेगी | अगर वह तुम्हारे जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा ? या तो वह देवी ही यकीं के काबिल नहीं है, या तुम्हारी इबादत ही झूठी है | इम्तिहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग किये देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दुबारा ज़िंदा करवा लेना |"
इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गयी | ध्यानू -भक्त ने कोई उपाय न देकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सर व् धड़ को सुरक्षित रखने की प्राथना की | अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली | यात्रा करने की अनुमति भी मिल गयी |
बादशाह से विदा लेकर ध्यानू भक्त अपने साथियो सहित माता के दरबार में जा उपस्थित हुआ | स्नान – पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया | प्रातः काल आरती के समय हाथ जोड़कर ध्यानू ने प्रार्थना कि, "हे मातेश्वरी ! आप तो अन्तर्यामी है , बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को, अपनी कृपा व् शक्ति से जीवित कर देना, चमत्कार प्रकट करना, अपने सेवक को कृतार्थ करना | यदि आप मेरी प्राथना सवीकार नहीं करेगी तो मैं भी अपना सर काटकर आपके चरणो में अर्पित कर दूंगा, क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है | यह मेरी प्रतिज्ञा है | कृप्या आप उत्तर दें |"
कुछ समय तक मौन रहा | कोई उत्तर न मिला |
इसके पश्चात भक्त ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया |
उसी समय साक्षात ज्वाला माई प्रकट हुई और ध्यानू – भक्त का सर धड़ से जुड़ गया, भक्त जीवित हो उठा | माता ने भक्त से कहा, "दिल्ली में घोड़े का सर भी धड़ से जुड़ गया है | चिंता छोड़कर कर दिल्ली पहुँचो | लज्जित होने का कारण निवारण हो गया | और जो कुछ इच्छा हो वर माँगो |
ध्यानू – भक्त ने माता के चरणों में शीश झुकाकर प्रणाम कर निवेदन किया, "हे जगदम्बे ! आप सर्व शक्तिमान है, हम मनुष्य अज्ञानी है, भक्ति की विधि भी नहीं जानते | फिर भी विनती करता हूँ की जगदमाता ! आप अपने भक्तो की इतनी कठिन परीक्षा न लिया करें | प्रत्येक संसारी -भक्त आपको शीश भेंट नही दे सकता | कृपा करके, हे मातेश्वरी ! किसी साधारण भेंट से ही अपने भक्तो की मनोकामनाएं पूर्ण किया करो |"
"तथास्तु ! अब से मैं शीश के स्थान पर केवल नारियल की भेंट व् सच्चे ह्रदय से की गयी प्रार्थना द्वारा मनोकामना पूर्ण करुँगी |" यह कहकर माता अंतर्ध्यान हो गयी |
इधर तो यह घटना घटी, उधर दिल्ली में जब मृत घोड़े का सर व् धड़, माता की कृपा से अपने आप जुड़ गये और वो जीवित हो उठा तो सब दरबारियों सहित बादशाह अकबर आश्चर्य में डूब गये | बादशाह ने अपने सिपाहियों को ज्वाला जी भेजा | सिपाहियों ने वापस आकर अकबर को सुचना दी , " की वहां ज़मीं से आग की लपटे निकला रही है, शायद उन्ही की ताकत से यह करिश्मा हुआ है | अगर आप हुक्म दे तो इन्हे बंद करवा दे | इस तरह हिन्दुओं की इबादत की जगह ही खत्म हो जाएगी |
अकबर ने स्वीकृति दे दी | परन्तु कुछ इतिहासकारो का मानना है की अकबर की स्वीकृति के बिना ही शाही सिपाहियों ने ऐसा किया था | कहा जाता है की शाही सिपाहियों ने सवर्प्रथम माता की पवित्र ज्योति की ऊपर लोहे की मोटे-मोटे तवे रखवा दिए | परन्तु दिव्य – ज्योति तवे फाड़कर ऊपर निकल आई | इसके पश्चात एक नहर का बहाव उस और मोड़ दिया गया, जिससे नहर का पानी निरंतर ज्योति के ऊपर गिरता रहे | फिर भी ज्योतियो का जलना बंद न हुआ | शाही सिपाहियों ने अकबर को सुचना दी | जोतों का जलना बंद नहीं हो सकता, हमारी सारी कोशिशे नाकाम हो गयी | आप जो मुनासिब हो, वह करें |
यह समाचार पाकर बादशाह अकबर ने दरबार के विद्वानों से परामर्श किया | विद्वानों ने विचार करके कहा की आप सवयं जा कर दैवी-चमत्कार देखें तथा नियमानुसार भेंट आदि चढ़ाकर दैवी माता को प्रसन करें |
अकबर ने विद्वानों की बात मान ली | सवा मन पक्का सोने का भव्य छत्र तैयार हुआ | फिर वह छत्र अपने कंधे पर रखकर नंगे पेरों ज्वाला जी पहुंचे | और दिव्य ज्योति के दर्शन किये, मस्तक श्रद्धा से झुक गया, अपने मन में पश्चाताप होने लगा | और कहने लगा | हे माँ, मैं आपको सवा मन पक्का सोने का भव्य छत्र भेंट सबरूप चढ़ा रहा हूँ | आज तक किसी राजा ने आपको सवा मन पक्का सोने का भव्य छत्र भेंट नही किया होगा | कृप्या मेरी भेंट स्वीकार कीजिए | अकबर के घमंड भरे शब्द बोलते ही छत्र पर एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और फिर अकबर से बह छत्र नीचे गिर गया | और जैसे ही वह छत्र गिरा वो सोने का न रहा, किसी विचित्र धातु का बन गया , जो न लोहा था , न पीतल, न ताम्बा न और कोई धातु |
अर्थार्त दैवी ने भेंट अस्वीकार कर दी |
इस चमत्कार को देखकर अकबर ने अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए माता से क्षमा की भीख मांगी और अनेक प्रकार से पूजा करके दिल्ली वापिस लौटा | आते ही सिपाहियों के लिए सभी भक्तों से प्रेम-पूर्वक व्यव्हार करने का आदेश दिया |
अकबर बादशाह द्वारा चढ़ाया गया खंडित छत्र ज्वाला माता के दरबार में आज भी पड़ा देखा जा सकता है जो देखने से सोने का प्रतीत होता है भार भी सोने का ही है पर किसी भी धातु का नही हैं |
!! जय माता दी !!
English Translation
This is the incident of the days when India was ruled by Mughal Emperor Akbar. A resident of Nadoun Village, Jawala Ji (Dhyanu Bhagat) was going to Jawala Maa Darshan with a thousand devotees. Seeing such a large party, the Emperor’s soldiers stopped them at Chandni Chowk in Delhi and brought Dyanu Bhagat and presented him to the court of Akbar.
Akbar asked, “Where are you taking so many men along?”
Dhyanu Bhagat replied with folding hands, “I am going for a darshan of Maa Jwala Devi. These people with me are also devotees of Mother and are going on a pilgrimage.”
Akbar heard this and said, “Who is this Jwala Maa? And what will happen by visiting there?”
The devotee replied, “Jawala Maa is the creator and preserver mother of the world, she accepts prayer from the true heart of the devotees and fulfills all their wishes. Her glory is such that at her place, flames keeps on burning without any oil. We all visit her at her temple every year for darshan. ”
Akbar said, “how can i believe that your Jawala Maa is so powerful? After all you are a devotee of that mother, if you show any miracle then we will also accept it.”
Dhyanu Bhagat answered very calmly. Sir! I am a small servant of the mother, what miracles can I show?
Akbar said, “If your devotion is true, then Goddess Mother will definitely preserve your honour. If she does not take care of devotees like you, then what is the use of worshiping her? Either she is not worth a Goddess or your devotion is a falsehood. For the test we cut the neck of your horse, you will be able to get him alive by praying to your Goddess. ”
Thus the neck of the horse was cut. Dhyanu Bhagat requested for the protection of the horse and the head of the horse for a period of one month by not giving any remedy. Then Akbar accepted the Dhyanu Bhagat Request and also permitted him for traveling.
After leaving from there, Dhyanu Bhagat along with other devotees reached and gathered in the Jwala Maa Temple. After bathing, Devotees worshiped the Goddess throughout the night by singing bhajans, reciting aarti. Next day morning, Dhyanu said, “O Maa! You are an antaryami. The King is testing my devotion, Please keep my honour. Please give life to my horse with your miracle. If you do not accept my prayer, then I will cut off my head and offer it to your feet, because it is better to die than to live ashamed. This is my pledge. Please answer.”
There was silence for some time. No answer was found.
After this, Dhyanu Bhagat cut his head with the sword and presented it to the Goddess.
That very moment, Jawala Maa appeared and the head of Dhyanu Bhagat got fixed to his body and he stood up alive. Mother said to the devotee, “The head of the horse has also got fixed to its body in Delhi.Leave all your worries and go to Delhi. The reason for being ashamed has been solved and ask for whatever you desire”
Dhyanu – The devotee, bowed down at the feet of the mother and pleaded, “O Jagadamba! You are all powerful, we humans are ignorant, do not even know the method of devotion. Still, the Holy Mother! Please don’t take such an extreme pareeksha (exam) of your devotees. All cannot offer you their head. Please, O Mother Goddess, fulfill the desires of your devotees with an ordinary offerings. ”
“So be it! From now on, I will fulfill the desire by an offering of a coconut instead of sheesh(head) and a prayer with a true heart.” By saying this, Mother disappeared.
Here this incident happened, in Delhi the horse’s head got attached to his body with the grace of the Goddess. After this the king and all his ministers were shocked and surprised. The king sent his soldiers to Jawala Ji. The soldiers came back and told Akbar, “There are flames of fire emerging from land, Perhaps the miracle is happening because of the flames. If you order, then we will extinguish these flames, By this way the place of Hindu Worship will also be destroyed.
Akbar Approved this But some historians believe that without the acceptance of Akbar, the royal soldiers did so. It is said that the royal soldiers first kept the flat iron disks on the holy flames of the Goddess. But the divine flames came out and broke the iron disks. After this, the flow of a canal was further twisted, causing the water of the canal continuously falling on the flames. Still the burning of the flames did not stop. Imperial soldiers informed Akbar that the burning of the flames can not be stopped, all our efforts have failed. Whatever you feel right please do so.
After receiving this news, Emperor Akbar consulted the scholars of the court. After discussing the scholars suggested that you should go and see divine miracles and arrange and offering according to the rules and please the Goddess.
Akbar accepted the suggestion of scholars. A grand golden parasol (chattar) was made. Then he put the golden parasol (chattar) on his shoulder and reached Jawala Ji bare feet. Then he had Darshan of diving flames, his head bowed down with devotion, he started feeling guilty in his heart. Then he started saying. O mother, I am offering you a grand golden parasol (chattar). Till date, no king would have offered you a grand golden parasol (chattar). Please accept my offering. Speaking with the boastful words, a divine flame appeared on the golden parasol (chattar) and then golden parasol (chattar) fell down from Akbar. And as soon as the golden parasol (chattar) fell, it changed into a strange metal, which was neither iron, nor brass, nor copper nor any other metal (unknown metal).
Hence, the Divine rejected the offering.
Seeing this miracle, Akbar praised in many ways and asked for forgiveness from the mother and returned to Delhi after performing many prayers. After reaching Delhi he ordered his soldiers to behave lovingly with all the devotees.
Even today, In the Jwala Maa Temple, The fragmented parasol (chattar) offered by the Akbar Emperor is still displayed, which by appearance looks like gold. Weight is also of gold metal. But the metal is still unknown to the world.
!! Jai Mata Di !!